किसका रस्ता देखें? 🍂
4:24 am
शायद मैं एक परिंदा हूँ, जो सूरज के करीब उड़ता गया,
प्रेरणा की किरणों में डूबा, पर अब थका-थका सा रहा।
जीवन के तूफान अब रोमांच नहीं देते,
हर झोंका एक परिचित सिसक, दिल को चीरते।
अगर मुझे दिखता है वह क्षितिज, जहाँ सपने उड़ान भरते,
तो क्यों चिंता की छाया, मेरी आँखों में छिपते?
इस चमकदार मुखौटे के पीछे, बादल घेरते,
चुपचाप डर की लहरें, मन को भेदते।
एक लहर का अहसास, इच्छा की गहराई,
खुद को ढूंढने की चाह, जलती आग की सच्चाई।
पर निर्णय की तट पर, ठहराव का जाल,
इस बेचैन धारा में, खो जाता है हाल।
इस आराम की सागर में, जहाँ डर और आशा मिलते,
मैं खोजता हूँ एक पतवार, जो मुझे दिशा दे।
तो मैं खड़ा हूँ उस कगार पर, जहाँ दुनिया है मेरे पास,
उड़ने को तैयार, अपने दिल की धड़कन को जगाने को बस।
S.S.
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